कभी तो पलट के वो भी देखता होगा ,
खुद में मुझे न पाकर ;
कभी तो वो भी मुझे ढूंढता होगा ,
उन्ही रास्तों पर दोबारा चल कर
कभी तो उसे भी मेरे होने का एहसास होता होगा ,
अपनों के बीच अचानक से ;
जैसे कभी हुए ही न हो फासले इतने ,
जैसे मैं आ जाऊ चुपके से
कभी तो वो भी हँसता और रोता होगा ,
मेरी उन बातों को याद कर ;
कभी तो वो यादें करती होंगी उसे भी बेचैन ,
जैसे कर जाती हैं मुझे अधूरा उसका साया बन कर
कभी कहीं किसी पल इस ज़िन्दगी में ,
हम होंगे फिर आमने सामने कभी तो ;
उस पल के इंतज़ार में खड़ी हूं वही ,
जहाँ कभी छोड़ गए थे कभी वो
लोग पूछते हैं मुझसे क्यूँ तन्हा हूं इस सफर में ,
क्यूँ कोई नहीं हमसफ़र मेरा ;
उसकी यादों के साथ कहाँ अकेली हूँ कैसे कहूँ उन्हें ,
साँसों के उस तरफ़ फिर होगा साथ हमारा