मन के हारे हार और मन के जीते जीत …

उसने कहा कोशिश कैसे करुँ ,

  मन में जब उम्मीद नहीं ।
उसने कहा किस रस्ते जाँऊ ,
  जब जीवन में मंज़िल नहीं ।
यूँ मन के हारे हार है,
  पर मन के जीते जीत भी ।
है सांसें तो फिर उम्मीद न छोड़ ,
  क्यूंकि उम्मीद ही है ये ज़िन्दगी ।
उसने कहा है पैरों  में बेड़ियाँ ,
  तो फिर कैसे कदम बढ़ाऊं ।
उसने कहा है ये एक पिंजरा ,
  तोड़ इसे कैसे उड़ जाऊँ ।
पैरों की बेड़ियाँ मन के ढृढ़ निश्चय को ,
  कब है बॉंध पाईं ?
कैद तो हम है अपनी ही सोच से ,
  हमने है खुद ही ये दीवार बनाई ।
उस हौसले को कोई तोड़ पाया नहीं ,
  वो लौ कभी न है बुझी ।
जो हमने है खुद से जुटाया ,
  जो हमने है खुद जलाई ।

Author of "My Beloved's MBA Plans", "Because Life Is A Gift" & "Corporate Avatars"

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