कुछ ही पलों में ज़िंदगी का एक साल और होगा खत्म ,
और होगी शुरुआत इक नए साल की |
पिछले साल के लम्हे बनेंगे बीता हुआ कल ,
और होगी दस्तक इक नए कल की |
यूँ ही ज़िन्दगी निकलने लगी हो जैसे ,
और यू ही मानो आज बन रहा है कल |
बीते साल , बीती यादें , बीते लम्हे ,
ज़िन्दगी रही रेत बन फिसल |
जैसे कल ही की बात हो ,
जब माँ ने मनाया था मेरा पहला जन्मदिन |
उँगली पकड़ सीखा था चलना ,
पहला कदम चली थी सहारे बिन |
फिर पढ़ाई और लक्ष्य जैसे थे शब्द सीखे ,
ज़िन्दगी में सपने लगी बुन ने |
कुछ हुए पूरे और हमारी ख़ुशी का न रहा ठिकाना ,
कुछ अधूरे सपने बन कर अश्रू छलके |
आई पहली नौकरी और पहली तनख्वाह ,
और उस दौर में पैसा खुशी देने लगा |
ऐसा लगा दुनिया अपनी पकड़ में होगी ,
हर मकाम मुमकिन लगने लगा |
पर ज़िन्दगी ने दिखाए रंग ,
और जिनके साथ के थे ज़िन्दगी में मायने |
वो एक अलविदा कह चले गए ,
बिना हमारा सोचे, बिना पीछे मुड़े |
जो ज़िन्दगी थी कल तक पकड़ में ,
वो मज़ाक सी लगने लगी |
अपने कल की अँधेरी रात में ,
मैँ पगली अपने उजले भविष्य को तलाशने लगी |
ज़िन्दगी का नाम चलना है ,
फिर कब तक रोकती उसे मैं |
उठ खड़ी हुई एक बार फिर ,
ज़िन्दगी को अनुभव करने |
आज इतने सालों का रास्ता तेह कर ,
इतना ही समझ पाई हूँ |
किस मोड़ पे ज़िन्दगी कहा ले जाए ,
मैं तो बस एक राही हूँ |
आज में जीना यही है ज़िन्दगी ,
बीते हुए कल और आने वाले कल के मायने नहीं |
ज़िन्दगी से नाराज़गी बेवज़ूल है
अगर आज में नहीं जी ज़िन्दगी |